Hanuman Chalisa Hindi

हनुमान चालीसा: पाठ करने के 10 लाभ

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हनुमान चालीसा लाभ

  1. संकटों का नाश: हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करने से सभी प्रकार के संकट और बाधाएं दूर हो जाती हैं।

2. शारीरिक और मानसिक बल: यह चालीसा शारीरिक और मानसिक बल को बढ़ाती है।

3. आध्यात्मिक विकास: हनुमान चालीसा का पाठ आत्मा को शुद्ध करता है और आध्यात्मिक विकास में सहायता करता है।

4. नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा: यह चालीसा नकारात्मक ऊर्जा और बुरी आत्माओं से सुरक्षा प्रदान करती है।

5. स्वास्थ्य लाभ: नियमित रूप से हनुमान चालीसा का पाठ करने से रोगों और बीमारियों से राहत मिलती है।

6. मन की शांति: यह चालीसा मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करती है।

7. भक्ति और विश्वास में वृद्धि: हनुमान चालीसा का पाठ भगवान हनुमान के प्रति भक्ति और विश्वास को मजबूत करता है।

8. सकारात्मक ऊर्जा का संचार: यह सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और जीवन में सकारात्मकता लाता है।

9. समस्याओं का समाधान: जीवन में आने वाली समस्याओं और चुनौतियों का समाधान करने में मदद करता है।

10. धन और समृद्धि: हनुमान चालीसा का नियमित पाठ धन और समृद्धि लाता है।

 

 

श्री  हनुमान चालीसा

दोहा

श्री गुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुर सुधार।

बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार॥

चालीसा

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।

जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

रामदूत अतुलित बल धामा।

अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा॥

महावीर विक्रम बजरंगी।

कुमति निवार सुमति के संगी॥

कंचन बरन विराज सुबेसा।

कानन कुण्डल कुंचित केसा॥

हाथ वज्र औ ध्वजा विराजै।

काँधे मूँज जनेऊ साजै॥

शंकर सुवन केसरी नन्दन।

तेज प्रताप महा जग बन्दन॥

विद्यावान गुनी अति चातुर।

राम काज करिबे को आतुर॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लखन सीता मन बसिया॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।

विकट रूप धरि लंक जरावा॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे।

रामचन्द्र के काज सँवारे॥

लाय सजीवन लखन जियाये।

श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।

तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।

अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।

नारद शारद सहित अहीसा॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।

कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।

राम मिलाय राजपद दीन्हा॥

तुम्हरो मन्त्र विभीषण माना।

लंकेश्वर भए सब जग जाना॥

जुग सहस्र जोजन पर भानू।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।

जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं॥

दुर्गम काज जगत के जेते।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

राम दुआरे तुम रखवारे।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।

तुम रक्षक काहू को डर ना॥

आपन तेज सम्हारो आपै।

तीनों लोक हाँक ते काँपै॥

भूत पिशाच निकट नहिं आवै।

महावीर जब नाम सुनावै॥

नासै रोग हरै सब पीरा।

जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

संकट तें हनुमान छुड़ावै।

मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥

सब पर राम तपस्वी राजा।

तिन के काज सकल तुम साजा॥

और मनोरथ जो कोई लावै।

सोइ अमित जीवन फल पावै॥

चारों युग परताप तुम्हारा।

है परसिद्ध जगत उजियारा॥

साधु-संत के तुम रखवारे।

असुर निकन्दन राम दुलारे॥

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।

अस वर दीन जानकी माता॥

राम रसायन तुम्हरे पासा।

सदा रहो रघुपति के दासा॥

तुम्हरे भजन राम को पावै।

जनम जनम के दुख बिसरावै॥

अन्त काल रघुबर पुर जाई।

जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥

और देवता चित्त न धरई।

हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥

संकट कटै मिटै सब पीरा।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

जय जय जय हनुमान गोसाईं।

कृपा करहु गुरु देव की नाईं॥

जो सत बार पाठ कर कोई।

छूटहि बंदि महा सुख होई॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।

होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

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